झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ
मैं इसलिए हर एक को भाता नही हूँ
लड़ाईयां क्यूँ लड़ूं मैं हरेक तबके की
आदमी हूँ अदना सा विधाता नही हूँ
ख़ामोशी से लगा हूँ अपने मकसद में
ये करूंगा वो करूंगा चिल्लाता नही हूँ
आज बेशक बिरादरी संग नही है मेरे
यह अफ़सोस मैं कभी मनाता नही हूँ
जिनपे बहस का कोई अर्थ नही होता
मैं मसले वो कभी भी उठाता नही हूँ
जो दिल में भी एक दिमाग रखते है
मैं उन लोगो के समझ आता नही हूँ
हाँ थोड़ा बहुत बेचैन कमीना हूँ मैं भी
नाता ख़ुदग़र्ज़ो के संग निभाता नही हूँ
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