दो जून की रोटी कमाने की फिराक में
ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में
रिश्ता कोई भी हो तार रूह से जुड़ते है
अहसास को कोई भी ना ले मज़ाक में
लब्ज़ो की धमक दिमाग से टकराती है
बोलता है जो भी कोई आदमी नाक में
उफ़ तरक्की में डूबे नए युग के हादसे
गिद्ध की तरह रहते है हरदम ताक में
सब हर्फो की जादूगरी है वरना बेचैन
कोई फर्क नही बेशर्म और बेवाक में
ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में
रिश्ता कोई भी हो तार रूह से जुड़ते है
अहसास को कोई भी ना ले मज़ाक में
लब्ज़ो की धमक दिमाग से टकराती है
बोलता है जो भी कोई आदमी नाक में
उफ़ तरक्की में डूबे नए युग के हादसे
गिद्ध की तरह रहते है हरदम ताक में
सब हर्फो की जादूगरी है वरना बेचैन
कोई फर्क नही बेशर्म और बेवाक में
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