रिश्ता मानव बम निकला है
सोच सोचकर दम निकला है
फिर भी साला कम निकला है
किसे बता दे हालत मन की
सबके भीतर गम निकला है
हाय रौशनी की हसरत में
दूर दूर तक तम निकला है
जान गंवा दी थी कीड़े ने
तब जाकर रेशम निकला है
मत पूछो रो-रोकर कैसे
पतझड़ का मौसम निकला है
क्या होगा बेचैन उनसे
रिश्ता मानव बम निकला है
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