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Tuesday, 11 December 2012

फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

वास्ता नही रखना तो फिर मुझपे नजर क्यूं रखता है
मैं किस हाल में जिंदा हूँ तू ये सब खबर क्यूं रखता है

बात अगर फूलों की कलियों की गुलशन की करता है
अपने लब्जों में फिर छिपाकर तू पत्थर क्यूं रखता है

गर कुनबा ही समझता है तू इस पूरी दुनिया को
फिर ज़हन के कोने में सदा अपना घर क्यूं रखता है

तू तो कहता है मैं दुखाता नही दिल किसी का भी
फिर खुदा तुम्हारी दुआओं को बेअसर क्यूं रखता है

किसी को जीतने की कोशिश तू करना नही चाहता
बता फिर हारने का मन में अपने डर क्यूं रखता है

इश्क इबादत है खुदा की जिसे तुमने ठुकरा दिया
फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

तू मुझको छोड़ तो सकता है पर भूला नही सकता
बता बेचैन मेरा वजूद तुझे मुख्तसर क्यूं लगता है

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