ऐसा लगता है उसे मेरी जरूरत ही नही
यूं पेश आता है जैसे महोब्बत ही नही
पास होकर भी नही करता वो आजकल बातें
ढंग ख़ामोशी का कहता है चाहत ही नही
और यकी जियादा जां देकर ही दिला सकता हूँ
बदनसीबी जीते जी उसे अकीदत ही नही
सजने लगे गमलो में कागज़ के फूल जब से
कीचड़ के कमल की कोई कीमत ही नही
सच तो यही है सुर्ख आँखों की कसम यारो
बेचैन मिन्नते करने की और हिम्मत ही नही
यूं पेश आता है जैसे महोब्बत ही नही
पास होकर भी नही करता वो आजकल बातें
ढंग ख़ामोशी का कहता है चाहत ही नही
और यकी जियादा जां देकर ही दिला सकता हूँ
बदनसीबी जीते जी उसे अकीदत ही नही
सजने लगे गमलो में कागज़ के फूल जब से
कीचड़ के कमल की कोई कीमत ही नही
सच तो यही है सुर्ख आँखों की कसम यारो
बेचैन मिन्नते करने की और हिम्मत ही नही
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