वो प्यार के मसले पर जब भी बतियाता है
मुझे मेरे सवालों के साथ छोड़ जाता है
समझ नही पाया उसका अंदाज़े महोब्बत
खुद ही दर्द देकर खुद ही मरहम लगाता है
अहसास के मुसाफिर बाखूबी जानते है
कौन किसको जबरदस्ती खींचकरलाता है
हुआ बेबसी के हवाले तो इल्म हुआ भारी
आशिक तो दोस्तों हर हाल में पछताता है
अफ़सोस के दायरे में भी वही रहता है
जो रिश्तों पर ज्यादा उंगलिया उठाता है
मुझे गुस्सा भी अक्सर इसीलिए आता है
वो बात को गेंद सा गोल-गोल-घुमाता है
उसकी जुल्फें मेरे ज़ज्बात उलझे है
देखते है वक्त पहले किसको सुलझाता है
उतर तो जाता हूँ रोज यादों की नदी में
जबकि मुझे बेचैन तैरना नही आता है
मुझे मेरे सवालों के साथ छोड़ जाता है
समझ नही पाया उसका अंदाज़े महोब्बत
खुद ही दर्द देकर खुद ही मरहम लगाता है
अहसास के मुसाफिर बाखूबी जानते है
कौन किसको जबरदस्ती खींचकरलाता है
हुआ बेबसी के हवाले तो इल्म हुआ भारी
आशिक तो दोस्तों हर हाल में पछताता है
अफ़सोस के दायरे में भी वही रहता है
जो रिश्तों पर ज्यादा उंगलिया उठाता है
मुझे गुस्सा भी अक्सर इसीलिए आता है
वो बात को गेंद सा गोल-गोल-घुमाता है
उसकी जुल्फें मेरे ज़ज्बात उलझे है
देखते है वक्त पहले किसको सुलझाता है
उतर तो जाता हूँ रोज यादों की नदी में
जबकि मुझे बेचैन तैरना नही आता है
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