Friends

Saturday, 28 July 2012

आशिक तो दोस्तों हर हाल में पछताता है

वो प्यार के मसले पर जब भी बतियाता है
मुझे मेरे सवालों के साथ छोड़ जाता है

समझ नही पाया उसका अंदाज़े महोब्बत
खुद ही दर्द देकर खुद ही मरहम लगाता है

अहसास के मुसाफिर बाखूबी जानते है
कौन किसको जबरदस्ती खींचकरलाता है

हुआ बेबसी के हवाले तो इल्म हुआ भारी
आशिक तो दोस्तों हर हाल में पछताता है

अफ़सोस के दायरे में भी वही रहता है
जो रिश्तों पर ज्यादा उंगलिया उठाता है

मुझे गुस्सा भी अक्सर इसीलिए आता है
वो बात को गेंद सा गोल-गोल-घुमाता है

उसकी जुल्फें मेरे ज़ज्बात उलझे है
देखते है वक्त पहले किसको सुलझाता है

उतर तो जाता हूँ रोज यादों की नदी में
जबकि मुझे बेचैन तैरना नही आता है



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