वक्त के मारों ने तजुर्बे से बताया है
हमने अनाज कम फरेब ज्यादा खाया है
दोस्ती ही सम्भालती है बढ़कर आगे
खून के रिश्तों ने जब भी रंग दिखाया है
किसी के भी बस का नही होता जो इंसा
आखिरकार औलाद के काबू आया है
कामयाबी उससे सख्त नफरत करती है
अपने माँ बाप का जिसने दिल दुखाया है
मातम मनाकर अपनी बेबसी का पहले
गरीब ने बेटी का जब ब्याह रचाया है
आटे दाल का भाव तो उससे पूछिये
अपने बूते पर जिसने घर बसाया है
इश्क और-सियासत है उनकी बेचैन
चेहरे पर जिसने चेहरा चढाया है
हमने अनाज कम फरेब ज्यादा खाया है
दोस्ती ही सम्भालती है बढ़कर आगे
खून के रिश्तों ने जब भी रंग दिखाया है
किसी के भी बस का नही होता जो इंसा
आखिरकार औलाद के काबू आया है
कामयाबी उससे सख्त नफरत करती है
अपने माँ बाप का जिसने दिल दुखाया है
मातम मनाकर अपनी बेबसी का पहले
गरीब ने बेटी का जब ब्याह रचाया है
आटे दाल का भाव तो उससे पूछिये
अपने बूते पर जिसने घर बसाया है
इश्क और-सियासत है उनकी बेचैन
चेहरे पर जिसने चेहरा चढाया है
3 comments:
आज 11/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
उसका ज़िक्र जो हम, हर रोज किया करते हैं
इस बहानें उसमें हम, खुद को जिया करते हैं--रोली
बेचैन की ग़ज़लें
को
ग़जलों के लिये बेचैन का आदाब
वर्ड व्हेरिफिकेशन हटवाइये बेचैन भाई साहब
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