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Tuesday, 24 July 2012

हमने अनाज कम फरेब ज्यादा खाया है

वक्त के मारों ने तजुर्बे से बताया है
हमने अनाज कम फरेब ज्यादा खाया है

दोस्ती ही सम्भालती है बढ़कर आगे
खून के रिश्तों ने जब भी रंग दिखाया है

किसी के भी बस का नही होता जो इंसा
आखिरकार औलाद के काबू आया है

कामयाबी उससे सख्त नफरत करती है
अपने माँ बाप का जिसने दिल दुखाया है

मातम मनाकर अपनी बेबसी का पहले
गरीब ने बेटी का जब ब्याह रचाया है

आटे दाल का भाव तो उससे पूछिये
अपने बूते पर जिसने घर बसाया है

इश्क और-सियासत है उनकी बेचैन
चेहरे पर जिसने चेहरा चढाया है

3 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 11/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

yashoda Agrawal said...

उसका ज़िक्र जो हम, हर रोज किया करते हैं
इस बहानें उसमें हम, खुद को जिया करते हैं--रोली
बेचैन की ग़ज़लें
को
ग़जलों के लिये बेचैन का आदाब

yashoda Agrawal said...

वर्ड व्हेरिफिकेशन हटवाइये बेचैन भाई साहब