Friends

Thursday, 26 April 2012

जिंदगी तबाह करके इंतिहान ना दे


अपनी इक जिद के पीछे जान ना दे
जिंदगी तबाह करके इंतिहान ना दे

गलत फैंसला तो गलत ही होता है
तू करके जिरह कोई भी बयान ना दे

खुद ही कातिल है तू अपने वजूद का
इल्जाम वक्त के सर मेरी जान ना दे

डरता हूँ ले न जाए बहाकर तुझको
अपने सीने में कोई तूफ़ान ना दे

इंतजार की भी आखिर हद होती है
तू पछताने का खुद को सामान ना दे

आदत पड़ गई तो फिर छूट ना सकेगी
लबो को रोजाना झूठी मुस्कान ना दे

कोई भी मजबूरी नही कहती बेचैन
अपने हिस्से का खुद को आसमान ना दे

No comments: