अपनी इक जिद के पीछे जान ना दे
जिंदगी तबाह करके इंतिहान ना दे
गलत फैंसला तो गलत ही होता है
तू करके जिरह कोई भी बयान ना दे
खुद ही कातिल है तू अपने वजूद का
इल्जाम वक्त के सर मेरी जान ना दे
डरता हूँ ले न जाए बहाकर तुझको
अपने सीने में कोई तूफ़ान ना दे
इंतजार की भी आखिर हद होती है
तू पछताने का खुद को सामान ना दे
आदत पड़ गई तो फिर छूट ना सकेगी
लबो को रोजाना झूठी मुस्कान ना दे
कोई भी मजबूरी नही कहती बेचैन
अपने हिस्से का खुद को आसमान ना दे
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