लो मैं तुमसे लड़ना छोड़ रहा हूँ
तेरी आँखें पढना छोड़ रहा हूँ
आज से खुशियाँ मनाओ जानेमन
अपनी जिद पर अड़ना छोड़ रहा हूँ
चुम्बन तंगदस्ती ना होगा माथे पर
मैं अब आगे बढना छोड़ रहा हूँ
कह दिया है मन ने तन्हाइयों को
दिन और रात झड़ना छोड़ रहा हूँ
जान गया प्यार पाप नही है बेचैन
अब मैं शर्म से गढना छोड़ रहा हूँ
1 comment:
Ati sunder.
Post a Comment