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Tuesday, 13 December 2011

ज़ज्बात का खरगोश निशाना था उसका

उम्र भर के साथ को तो गोली मारो
वो हमसे दो दिन में ही खफा हो गये

मुद्दत से भर रहा था जिनमे में रंग
झटके में ख्वाब सारे सफा हो गये

ज़ज्बात का खरगोश निशाना था उसका
कमबख्त करके शिकार दफा हो गये

यह खूब रही इश्क ने राख कर डाला
जलाकर मुझे कमबख्त धुंआ हो गये

गम का जश्न मना बोतल खोल ले बेचैन
सब वादे महोब्बत के जफा होग गये

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