शौक नही है पीने का मजबूरी पिलाती है
मूड़ बनता है तब जब उसकी याद आती है
दर्दे-दिल बर्दाश्त करना सबके बस का नही
इसे वो समझेगा लोहे की जिसकी छाती है
दगा देता है जब यार प्यार और रिश्तेदार
दवा के भेष में शराब ही साथ निभाती है
उस दिन तो दोस्तों हर हाल में जाम लगाता हूँ
जब लड़ाई के अंदेशे से बाई आँख फडफडाती है
खूब लिहाज़ बरतता हूँ पीने के बाद बेचैन
होश वालों से पूछो उन्हें कब शर्म आती है
मूड़ बनता है तब जब उसकी याद आती है
दर्दे-दिल बर्दाश्त करना सबके बस का नही
इसे वो समझेगा लोहे की जिसकी छाती है
दगा देता है जब यार प्यार और रिश्तेदार
दवा के भेष में शराब ही साथ निभाती है
उस दिन तो दोस्तों हर हाल में जाम लगाता हूँ
जब लड़ाई के अंदेशे से बाई आँख फडफडाती है
खूब लिहाज़ बरतता हूँ पीने के बाद बेचैन
होश वालों से पूछो उन्हें कब शर्म आती है
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