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Friday, 2 December 2011

अपना तो यारी से भरोसा उठ सा गया

कल जिसे ऊँगली पकड़ चलना सिखाया था
आज हमसे ही दौड़ने की शर्त लगा गया

अहसान फरामोशों की बढ़ रही है तादाद
मेरे अल्लाह जमी पर ये कैसा वक्त आ गया

उस दिन समझा औलाद की समझदारी
जब बेटा अपने बाप को नादान बता गया

वो कुत्ते पर जितना आये रोज खर्चता है
गरीब का कुनबा उतने में महिना चला गया

जिस अदा से किया है मुझे बेचैन उसने
अपना तो यारी से भरोसा  उठ सा गया

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