मैं बहुत कम लोगों से मुलाक़ात करता हूँ
जिनसे याराना हो उन्ही से बात करता हूँ
कहने को तो आती है मुझे जादूगरी मगर
ना दोस्तों के साथ कोई करामात करता हूँ
बस सीख ही नही पाया टालने की आदत
सब फैंसले मैं दोस्तों हाथों हाथ करता हूँ
मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता
अपनी तदबीर से ही मैं सवालात करता हूँ
नही ला पाया उस्तादों सा पैनापन हुनर में
तुकबंदियों के सहारे पेश ज़ज्बात करता हूँ
शायद इसी लिए लोग मुझे जानने लगे है
आये रोज़ कोई ना कोई खुरापात करता हूँ
खुदा जाने हो जाते है क्यूं कमजोर बेचैन
मैं तो बारहा मजबूत अपने हालात करता हूँ
3 comments:
wah bahut khoob likha aapne
kamaal ke shakhs hai aap .
wah wah V M BECHAIN g bhut khoob
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