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Monday, 3 October 2011

मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता



मैं बहुत कम लोगों से मुलाक़ात करता हूँ
जिनसे याराना हो उन्ही से बात करता हूँ
कहने को तो आती है मुझे जादूगरी मगर
ना दोस्तों के साथ कोई करामात करता हूँ
बस सीख ही नही पाया टालने की आदत
सब फैंसले मैं दोस्तों हाथों हाथ करता हूँ
मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता
अपनी तदबीर से ही मैं सवालात करता हूँ
नही ला पाया उस्तादों सा पैनापन हुनर में
तुकबंदियों के सहारे पेश ज़ज्बात करता हूँ
शायद इसी लिए लोग मुझे जानने  लगे है
आये रोज़ कोई ना कोई खुरापात करता हूँ
खुदा जाने हो जाते है क्यूं कमजोर बेचैन
मैं तो बारहा मजबूत अपने हालात करता हूँ


3 comments:

Anonymous said...

wah bahut khoob likha aapne

Hindustani said...

kamaal ke shakhs hai aap .

Anil Kath said...

wah wah V M BECHAIN g bhut khoob