मुझे मुनीमों की क्या जरूरत
दुश्मन ही मेरा हिसाब रखते
अपने जरूरी काम भूलकर भी
याद मेरा वो हर ख्वाब रखते
हो चाहे चुगली बनाम बेशक
वो चर्चा मेरी बेहिसाब रखते
नशे की हद तक गुजरते है वो
जो जाम के संग कबाब रखते
ना यादें इतना महकती उनकी
ना किताबों में जो गुलाब रखते
निहाल होते डूबकर दोनों बेचैन
जो नसीब में कोई चनाब रखते
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