अंगूर की बेटी के जो दीवाने नहीं
वो लोग महफ़िल में बुलाने नहीं
कल के टूटते आज ही टूट जाएँ
झूठे रिश्ते नाते हमें निभाने नहीं
जिंदगी का नशा वो क्या जाने
जिसने उठाकर देखें पैमाने नही
समझ सकता हूँ कजरारी आँखें
इनसे बढ़कर कहीं मयखाने नही
इतना तो तय है सितमगर के
साँझ ढलते ही ख्वाब आने नहीं
कल का ही तो वाक्यात है बेचैन
जख्म महोब्बत के पुराने नहीं
2 comments:
bahut khoob sahab ...maja aa gaya
nice poem sir
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