वो पास होकर भी मेरे पास नही लगा
न जाने क्यूं दिल को ख़ास नही लगा
बेशक से बढ़ी धडकने देखकर उसको
अपनेपन का पर अहसास नही लगा
इक सनक सी दिखी बातों में उसकी
विचारों में खुला आकाश नही लगा
यूं ही परेशां थे उसके मुरीद और वो
व्यवहार में मुझे विश्वास नही लगा
शातिर नही होते दिमाग वाले बेचैन
जुमला ये वाकई बकवास नही लगा
No comments:
Post a Comment