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Sunday, 11 September 2011

मर्दानगी से तर हो तो मैदान में आइये



आम आदमी होने का न मातम मनाइए
मर्दानगी से तर हो तो मैदान में आइये
सच में गर व्यवस्था बदलना चाहते हो
इन्कलाब का हिस्सा आप बन जाइये
यूं ही साफ नही होगी काई तालाब की
मिल बैठकर विचार कोई आप बनाइए
गरूर गर हुआ है सूरज को रोशनी का
आइना आफ़ताब को मिलके  दिखाइए
गुस्सा हर बात पर अच्छा नही बेचैन
थोडा वक्त के सांचे में भी ढल जाइये



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