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Wednesday, 31 August 2011

पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ


खूब झूमा अपने ख्वाब के साथ बैठ कर
आज पी भाई साहब के साथ बैठ कर
पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ
सीखा बहुत कुछ नकाब के साथ बैठ कर
बहुत कम लोगो को मालूम था आज
फंस गया सवाल जवाब के साथ बैठ कर
लाजिम था पीने के बाद खुशबू आये मुझमे
महसूस किया ये सब गुलाब के साथ बैठ कर
ऐसी कोई तीर मारने वाली बात नही बेचैन
देख लिया हमने जनाब के साथ बैठ कर

Tuesday, 30 August 2011

गरूर-ए-हुश्न भी टूटे और वो मेरे भी हो जाएँ



वो कर ले इकरार तो दुगना हो ईद का मज़ा
समझे मेरा प्यार तो दुगना हो ईद का मज़ा
गमे-बेरुखी का मारा हूँ एक मुदत से दोस्तों
वो हंस दे एक बार तो दुगना हो  ईद का मज़ा
महबूब की इक ना से क्या बीतती है दिल पर
वो करें सोच विचार तो दुगना हो ईद का मज़ा
गरूर-ए-हुश्न भी टूटे और वो मेरे भी हो जाएँ
मगर ना हो शर्मसार तो दुगना हो ईद का मज़ा
कौम-ओ-मजहब को दफन करके सब बेचैन
मनाएं हम त्यौहार तो दुगना हो  ईद का मज़ा




  

Monday, 29 August 2011

सीख गया वो मुकरने का हुनर



जब भी मेरे काम की बात आई
कोई न कोई मुश्किलात आई
करने लगा गरीब छत पक्की
बड़ी ही जोर की बरसात आई
हिज्रमन्दो के हिस्से में आखिर
क्यों बेकसी लेकर रात आई
दानियो का पड़ोसी होकर देखा 
दामन में ना कोई खैरात आई
सीख गया वो मुकरने का हुनर
जब सियासत उसके हाथ आई  
मौत आई तो कहना पड़ा बेचैन
कतई ना रास मुझे हयात आई

Friday, 26 August 2011

सोच-समझके बता बताने वाले






गम कम ना करेंगे जमाने वाले
सोच-समझके बता बताने वाले
रोकर पूछ लेंगे हंस कर टाल देंगे
झूठी तसल्ली देने दिलाने वाले
पीठ पीछे तेरी भी बुराई करते है
तेरे आगे और की चुगली खाने वाले
एक बार खून के आंसू जरुर रोते है
झूठी सिफारिसों से तमगे पाने वाले
पा ही लेते है साहिल को वो लोग
होश्ला कर तूफानों से टकराने वाले
वो धोखे का शिकार होकर बैठते है
दुसरे के पेट पर लात टिकाने वाले
सुलझते ही हालात रंग दिखा देते है
झूठे रिश्ते नाते  बेचैन निभाने वाले


एक दिन खुद से टकराना होगा




जख्म जितना पुराना होगा
रूह से उतना याराना होगा
जुल्फे खोलकर चलोगी तो
तेरा कौन नही दीवाना होगा
देखा आइना तो ख्याल आया 
एक दिन खुद से टकराना होगा
भूलूंगा जब तेरी नशीली आँखें
उस दिन हाथ में पैमाना होगा
रस्सी को जिसने सांप बना दिया
वो सियासत गर्द सयाना होगा
वो ही करेंगे भरोसे से खिलवाड़
घर में जिनका आना जाना होगा
यही है बिगड़ी तबियत का इलाज
 शौक पर बेचैन काबू पाना होगा

Thursday, 25 August 2011

मुदत से जल रहा हूँ परवानों की तरह


आया न करो पेश यूं मेहमानों की तरह
तुझे बसाया है दिल में अरमानों की तरह
इसे शौक समझिये या कहिये बेबसी
मुदत से जल रहा हूँ परवानों की तरह
अ हुश्ने- बेपरवाह क्या खबर है तुझको
नशा है तेरी आँखों में पैमानों की तरह
पल में दूर हो जायेगा अँधेरा जिंदगी का
चिरागे-उल्फत जलाओ दीवानों की तरह
जवानी गर चाहे तो क्या नही हो सकता
हौसला करके देखो तूफानों की तरह  
जिंदगी से तो खैर नामुमकिन थी वफा
मौत ने भी पेश आई बेजुबानो की तरह
क्या पता आंसू तेरे कोई खरीद ले बेचैन
कभी सज़ा तो सही पलकें दुकानों की तरह 

Tuesday, 23 August 2011

बाल कविता लिखने का प्रयास किया था ये बन गई दोस्तों अगर मैं कोई प्याऊ होता



मेरी खाट नीचे भी बिलाऊ होता
काश मैं भी किसे का ताऊ होता
डरते मेरे त भी छोटे-छोटे बालक
शक्ल का अगर मैं हाऊ होता
पीता दूध जित भी फसता मेरे
अगर मैं सचमुच म्याऊ होता
आता काम गर्मियों में प्यासों के
दोस्तों अगर मैं कोई प्याऊ होता
सरकार के पास बेचैन बात खातिर
कोए तो गधा काम चलाऊ होता



 

आत्मा ना गिरवी धरो सरकार के नुमायेंदो



बेशर्मी भी इतना न करो सरकार के नुमायेंदो
शर्म बची है तो डूब मरो सरकार के नुमायेंदो
लोकपाल पर पूरा देश हाय तौबा मचा रहा है
आत्मा ना गिरवी धरो सरकार के नुमायेंदो
फूटा जो घडा पाप का तो बर्बाद हो जाओगे
माल ना हराम का चरो सरकार के नुमायेंदो
देश के खातिर अन्ना ने इक सपना देखा है
उस सपने में रंग भरो सरकार के नुमायेंदो
चाहते हो अगर देश में कोई बेचैन ना हो
गरीबों के दुःख हरो सरकार के नुमायेंदो

Sunday, 21 August 2011

देखे कितने नेतागण




कीड़े पड़कर मरेंगे
सड़-सड़ कर मरेंगे
देश लूटने वालो के
बच्चे लड़कर मरेंगे
सच के सामने झूठे
नाक रगड़ कर मरेंगे 
देखे कितने नेतागण
शर्म में गडकर मरेंगे
सब गालियाँ भ्र्स्तों को
बेचैन जी जड़कर मरेंगे

Saturday, 20 August 2011

केंसर बन गया रिश्प्त्खोरी का जलपान


मदद कर खुदा इमदाद कर भगवान
है परिवर्तन के दौर में मेरा हिंदुस्तान
अगस्त क्रांति जाने क्या रंग लाएगी
आज अटकी हुई है हर किसी की जान
वक्त की अदालत में जारी है मुकदमा
जीतेगा अन्ना या सियासत के शैतान
काश शुरू दिन से सम्भल जाता देश
केंसर बन गया रिश्प्त्खोरी का जलपान
जायज़ है आम आदमी का बेचैन होना
छू रही है महंगाई आये दिन आसमान

ताकि ना मजे लुटे जेल में कसाब कोई


मुझे गलत समझने वालो दो जवाब कोई
न तो मेरे औलाद है ना घरेलू ख्वाब कोई
चाहता हूँ कानून आम जनता के हक में
ताकि ना मजे लुटे जेल में कसाब  कोई
भ्रसटाचार की बदबू को रोकने के लिए
जरूरी है आगे आये बनके गुलाब कोई
तजुर्बो की बदौलत उतरी है  बालों में चांदी
मैं क्यों लगाऊ अब बालों में खिजाब कोई
जो कहना  है मुह पर ही कहता हूँ बेचैन
मैं  बातों को नही पहनाता नकाब कोई

Friday, 19 August 2011

मांस नोचने में अब छा रहे है लोग



आँखों देखी मक्खी खा रहे है लोग
जान बूझके गर्क में जा रहे है लोग
शर्म-लिहाज़ पर बहस करने वाले
बेशर्मी का बिगुल बजा रहे है लोग
हमाम में नंगे होने की बातें छोडो
अब तो खुले में ही नहा रहे है लोग
चील और गिद्द भी हुवे खौफजदा है
मांस नोचने में अब छा रहे है लोग
राम नाम जपना पराया मॉल अपना
गीत एक ही सूर में गा रहे है लोग
कर ली है रिश्तेदारी झूठ से बेचैन
सच्चाई से भी जी चुरा रहे है लोग

अब जो कहते है ये जंग नही वे उल्लू के पट्ठे है



आज जो अन्ना के संग नही है वे उल्लू के पट्ठे है
जिनमे देशभक्ति का रंग नही वे उल्लू के पट्ठे है
भ्रसटाचार नही मिट सकता सोचने वालों सुन लो
जो इस बदलाव से दंग नही वे उल्लू के पट्ठे है
दुनिया भर में धूम मची है अन्ना जी के नाम की
सुन फड़का जिनका अंग नही वे उल्लू के पट्ठे है
रिस्पतखोरो के खिलाफ सख्त कार्रवाई को लेकर
जिसके भी मन में उंमग नही वे उल्लू के पट्ठे है
यह सौ फीसदी आज़ादी की दूसरी लड़ाई है बेचैन
अब जो कहते है ये जंग नही वे उल्लू के पट्ठे है

Tuesday, 9 August 2011

उन दिनों तुम अपने ज़ज्बात बदल सकते थे



तुमने चाहा ही नही हालात बदल सकते थे
अपनी बर्बादी की हम हर बात बदल सकते थे

आदमी कैसा हूँ मैं,मुझको समझते तो सही
मेरे बारे में तेरे ख्यालात बदल सकते थे
मेरे माथे पे मेरी कौम नही लिख रखी
साथ तुम देते हो हम ज़ात बदल सकते थे
जीना मुश्किल था अगर साथ इस दुनिया में
मर के हम तुम अपनी कायनात बदल सकते थे
मुझ पर इलज़ाम लगे जब जमाने भर के
उन दिनों तुम अपने ज़ज्बात बदल सकते थे
माफ़ हम करके तुम्हे, सीने से लगा लेते
पास आकर अपने वाक्यात बदल सकते थे
अपने बेचैन से तुम बात करते तो सही
हम तेरी आँखों की बरसात बदल सकते थे

तेरे गेसू मेरी किस्मत दोनों उलझे-उलझे है


मत पूछो  किसलिए आबे-जम पर लिखता हूँ
इक गजल रोजाना अपने गम पर लिखता हूँ
एक रोज़ तो जान जाऊंगा खारापन अश्को का
यही सोचकर मैं चश्मे-पुरनम पर लिखता हूँ
तेरे गेसू मेरी किस्मत दोनों उलझे-उलझे है
मैं इसीलिए तो जुल्फे- बरहम पर लिखता हूँ
दिल में सुलगे शोलो की रंजिस का राज यही
रोज़ सुबह अशआर मैं शबनम पर लिखता हूँ
ना सीखा ना फितरत में चोरी शामिल है बेचैन
जो भी लिखना होता है अपने दम पर लिखता हूँ

क्या खिला दिया साजन ने निखर गये हो



सरगोशी हो रही है तुम जिधर गये हो
क्या खिला दिया साजन ने निखर गये हो
कुछ नही हासिल,वक्त की दलील देने से
क्यू  नही मानते जुबां से मुकर गया हो
घुंघट की आड़ में रहकर चंद रोज़ सांवली
हुश्न की कसोटी पर खरे उतर गये हो
चाल में बर्क है तो तब्बसुम है लबो पर
निकाह के बाद अंदाजों से भर गये हो
पहरों बीतते थे जिन हमनशीनो के साथ
उनके भी घर मुलाकाते मुख्तसर गये हो
हर कहानी का अंजाम एक जैसा नही होता
किसलिए शहर में हुवे हादसे से डर गये हो
छोड़ दिया बेचैन उसने देखना कनखियों से
जब से तुम इलज़ाम अपने सिर धर गये हो

Monday, 8 August 2011

लाजिम था पीने के बाद खुशबू आये मुझमे


खूब झूमा अपने ख्वाब के साथ बैठ कर
आज पी भाई साहब के साथ बैठ कर
पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ
सीखा बहुत कुछ नकाब के साथ बैठ कर
बहुत कम लोगो को मालूम था आज
फंस गया सवाल जवाब के साथ बैठ कर
लाजिम था पीने के बाद खुशबू आये मुझमे
महसूस किया ये सब गुलाब के साथ बैठ कर
ऐसी कोई तीर मारने वाली बात नही बेचैन
देख लिया हमने जनाब के साथ बैठ कर

खूब झूमा अपने ख्वाब के साथ बैठ कर
आज पी भाई साहब के साथ बैठ कर
पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ
सीखा बहुत कुछ नकाब के साथ बैठ कर
बहुत कम लोगो को मालूम था आज
फंस गया सवाल जवाब के साथ बैठ कर
लाजिम था पीने के बाद खुशबू आये मुझमे
महसूस किया ये सब गुलाब के साथ बैठ कर
ऐसी कोई तीर मारने वाली बात नही बेचैन
देख लिया हमने जनाब के साथ बैठ कर

हो जाती बरसात तो ना सुलगता बेचैन



कौन बैठेगा भला आकर मुझ ठूठ के नीचे
ना छाया देता हूँ ना असर बहारो का है
गला घोंट दू यादो का नया घर बसा लू
मुझसे ना होगा ये काम तो गदारो का है
वो तो गम की कैद में हूँ वरना बता देता
क्या मतलब आजकल तेरे इशारो का है
हर काम में दिखाते है जो लोग कलाकारी
आज जमाना यारो उन कलाकारों का है
हो जाती बरसात तो ना सुलगता बेचैन
दिल जलाने में हाथ हल्की फुहारों का है

Sunday, 7 August 2011

मित्रता दिवस पर जब यादों के जंगल में गया तो ये रचना तैयार हुई



कुछ साले कुछ कुते कुछ कमीने याद आये
दोस्ती के नाम पर कुछ नगीने याद आये
बयाँ नही कर सकता मैं अहसास जिनका
मस्ती बिखेरते मुझे वो महीने याद आये
खुदा कितना साथ देता है नाखुदाओ का
जब महोब्बत के हमको सफिने याद आये
इश्क में उन दिनों की मेहनत तौबा तौबा
कैसे -कैसे निकले वो पसीने याद आये
सर चढ़कर बोलती थी नौजवानी मगर
बदमाशियो के हमको करीने याद आये
जिक्र मयकशी का छिड़ा तो सुन बेचैन
कोलिज़ में बैठकर जाम पीने याद आये

जब से हुवे बदतमीज़ थोडा



हम मुद्तो रहे अपनी हद में
ना बढ़ पाए रुतबा-ए- कद में
जब से हुवे बदतमीज़  थोडा
नाम आ गया बडो की जद में
आज कुर्सी की बात ना करो
अजीब सी ताकत है पद में
खूब पछताए इक उम्र के बाद
जो चूर थे कभी अपने मद में
राज बेचैन होने का जान जाओगे
 झांक कर देखो  मुझ निखद में



Saturday, 6 August 2011

ऊँगली पर गिनो जब यार अपने बेचैन



ये महोब्बत ये अपनापं बरकरार रखना
दोस्त सदा दिल में यूही प्यार रखना
आभागा हूँ मुझपे आ सकती है मुश्किल
देने को मेरा साथ खुद को तैयार रखना
सच कहू तो ज़माना मेरे पीछे पड़ा है
चापलूसों से खुद को खबरदार रखना
खबर देश प्रदेश की लगती रहेगी
घर में कोई बांधकर अखबार रखना
सुना है देश छोड़ कर जा रहे हो तुम
हो सके तो ख्याल मेरा उस पार रखना
ऊँगली पर गिनो जब यार अपने बेचैन
हो सके तो नाम मेरा शुमार रखना

कुछ शेर दोस्ती के लिए

सिवाय आपसे  जैसे यारों के मेरे पास क्या है
आपने ही तो बताया यारी का अहसास क्या है
खून के  रिश्ते तो आज ज़हर उगलने लगे है
कहो दोस्ती से बढ़कर रिश्ता  खास क्या है
...........................................................
जो करते नही खिलवाड़ दोस्ती के साथ
उन यारो को लेता हूँ संजीदगी के साथ
धोखा फरेब और मक्कारी के युग में  
कैसे कर लू दोस्ती हर किसी के साथ
............................................................
धडकनों को आँखों को, ना किसी का इंतज़ार हुआ
उसकी बे-वफाई के बाद, ना कोई मेरा यार हुआ
चाह कर भी ना बन सका मन का मीत कोई  
कहने को तो कई चेहरों में उसका दीदार हुआ
.............................................................कुछ शेर दोस्ती के लिए 
बनके लहू जो यार रगों में दौड़ते है
वो जिंदगी में इक मकसद जोड़ते है
शक में डूब जाती है उनकी हर बात  
जो लोग दोस्ती में भरोसा तोड़ते है



कहने को तो कई चेहरों में उसका दीदार हुआ

धडकनों को आँखों को, ना किसी का इंतज़ार हुआ
उसकी बे-वफाई के बाद, ना कोई मेरा यार हुआ
चाह कर भी ना बन सका मन का मीत कोई
कहने को तो कई चेहरों में उसका दीदार हुआ

Friday, 5 August 2011

सफर की शुरुआत ही क्यू होती है



घर की मुर्गी दाल बराबर होती है
बात में कितने तौला  मोती है
सोच समझ कर बताओ यारो
उमर ख़ुशी की किसलिए छोटी है
ता-उमर चलके भी दो गज जमी
सफर की शुरुआत ही क्यू होती है
उसकी यादें ना हुई गजब हो गया
आते ही मन का चैन क्यू खोती है
हजारों रिश्तो के आगे भी बेचैन
माँ किसलिए नम्बर वन होती है

उम्र भर का दे जाते है इंतजार कुछ लोग


क्यूं होते है इस कदर होशियार कुछ लोग
समझ लेते है दूसरो को बेकार कुछ लोग
कामयाबी सबका जन्मसिद्ध अधिकार है
क्यूं नही करते है सोच विचार कुछ लोग
जब देखो फूलों से दिल लगाते फिरते है
क्यूं नही चाहते उल्फत खार से कुछ लोग
मैंने देखा है औरों पर तंज़ कसने वालों को
नही करते है खुद को शर्मसार कुछ लोग
खाकर झूठी-सच्ची कसमे इश्क में अक्सर
उम्र भर का दे जाते है इंतजार कुछ लोग
जिनका मजबूरी में बोझ उठाना पड़ता है
किसलिए होते है रिश्तों पर भार कुछ लोग
नही समझ पाया हूँ मैं आज तक बेचैन
क्यूं करते है मतलब से व्यवहार कुछ लोग

Tuesday, 2 August 2011

धडकन सा मगर तू मेरी जान ही रहा

मकी ना बना दिल का मेहमान ही रहा
दोस्त जिंदगी पर सदा अहसान ही रहा
टपकता रहा ता-उम्र लहू मेरी आँखों से
लेकिन तू तमाशाइओ सा हैरान ही रहा
बेशक चढ़ गया हो परवान दुश्मनी का
धडकन सा मगर तू मेरी जान ही रहा
ना रास आया जमीं पर जब कोई नजारा
दूर तक नजर दौड़ाने को आसमान ही रहा
कुछ यूं मिला सिला इंतजार का हमको
मरते दम तक आँखों में तूफ़ान ही रहा
जान गया जब बागवा बे-वफाई मौसम की
बहारो के आने पर भी परेशान ही रहा
बेचैन रुत की मानिंद दुनिया बदल गई
अपना राहे-वफा पर चलना ईमान ही रहा

Monday, 1 August 2011

तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई

ठहरी आँखों की कसम दिल की शान चली गई

तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई

दौड़ता है लहू रगों में फकत कहने भर को

जिसे जिंदगी कहते है वो जुबान चली गई

एक बोझ बनकर वो धरती पे रह गया

जिस शख्स की ज़माने में पहचान चली गई

अपनी तस्वीर के बहाने मेरी तन्हाईयो को

देकर सज़ा ए हिज्र का सामान चली गई

पैगाम लेकर आई थी, जो लहर साहिल का

उठाकर मेरी जिंदगी में तूफ़ान चली गई

जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन

खाकर झूठी कसम वो बेईमान चली गई