मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ
भारी पड़े कौन कौन से ख्वाब लिख रहा हूँ
सच को सच और झूठ को झूठ पेश करके
वक्त की हेराफेरी का हिसाब लिख रहा हूँ
जिससे वास्ता नही उसकी क्यूं करूं पैरवी
गैर जरूरी सवालों के जवाब लिख रहा हूँ
जो होगा देखा जायेगा परवाह नही अब
करके हिम्मत खुलासों को जनाब लिख रहा हूँ
हिज्र में कोयले की तरह सुलगाते है रूह
मैं अश्को को इसलिए तेज़ाब लिख रहा हूँ
इबादत में नही मय्यत पर गिरने वाला
माफ़ करना तुझको वो गुलाब लिख रहा हूँ
भला कईयों का होगा इस बहाने बेचैन
कौन रखता है कितने नकाब लिख रहा हूँ
भारी पड़े कौन कौन से ख्वाब लिख रहा हूँ
सच को सच और झूठ को झूठ पेश करके
वक्त की हेराफेरी का हिसाब लिख रहा हूँ
जिससे वास्ता नही उसकी क्यूं करूं पैरवी
गैर जरूरी सवालों के जवाब लिख रहा हूँ
जो होगा देखा जायेगा परवाह नही अब
करके हिम्मत खुलासों को जनाब लिख रहा हूँ
हिज्र में कोयले की तरह सुलगाते है रूह
मैं अश्को को इसलिए तेज़ाब लिख रहा हूँ
इबादत में नही मय्यत पर गिरने वाला
माफ़ करना तुझको वो गुलाब लिख रहा हूँ
भला कईयों का होगा इस बहाने बेचैन
कौन रखता है कितने नकाब लिख रहा हूँ
No comments:
Post a Comment