Friends

Thursday, 6 December 2012

मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ

मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ
भारी पड़े कौन कौन से ख्वाब लिख रहा हूँ

सच को सच और झूठ को झूठ पेश करके
वक्त की हेराफेरी का हिसाब लिख रहा हूँ

जिससे वास्ता नही उसकी क्यूं करूं पैरवी
गैर जरूरी सवालों के जवाब लिख रहा हूँ 

जो होगा देखा जायेगा परवाह नही अब 
करके हिम्मत खुलासों को जनाब लिख रहा हूँ

हिज्र में कोयले की तरह सुलगाते है रूह
मैं अश्को को इसलिए तेज़ाब लिख रहा हूँ

इबादत में नही मय्यत पर गिरने वाला
माफ़ करना तुझको वो गुलाब लिख रहा हूँ

भला कईयों का होगा इस बहाने बेचैन
कौन रखता है कितने नकाब लिख रहा हूँ

No comments: