जिस रोज उतरूंगा मैं बेवफाई पर
सौ गुना भारी पडूंगा उस हरजाई पर
वही शख्स मेरी मुखबरी कर रहा है
दिन रात लिखता हूँ जिसकी अंगडाई पर
सौ गुना भारी पडूंगा उस हरजाई पर
वही शख्स मेरी मुखबरी कर रहा है
दिन रात लिखता हूँ जिसकी अंगडाई पर
किसके दम पर महफ़िल सजाने चला था ?
बैठा हंस रहा हूँ अपनी तन्हाई पर
दौरे-अलम में जो तमाशाबीन बने
किसलिए फक्र करूं ऐसी असनाई पर
महोब्बत का उसे देवता क्या माना ?
खूब सितम ढाता है अपनी खुदाई पर
वो ओरों पर क्या यकीं करेगा बेचैन
शक रहता है जिसे अपनी परछाई पर
बैठा हंस रहा हूँ अपनी तन्हाई पर
दौरे-अलम में जो तमाशाबीन बने
किसलिए फक्र करूं ऐसी असनाई पर
महोब्बत का उसे देवता क्या माना ?
खूब सितम ढाता है अपनी खुदाई पर
वो ओरों पर क्या यकीं करेगा बेचैन
शक रहता है जिसे अपनी परछाई पर
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