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Monday, 4 June 2012

मुझको तू चाहे अपना अजीज ना समझ

मुझको तू चाहे अपना अजीज ना समझ
पर मजे देने वाली भी चीज़ ना समझ

तुझको नही है इश्क तो अच्छी बात है
अगर है .तो बचने का ताबीज ना समझ

गुस्सा दिलाओगे तो फिसलेगी जुबान
वरना तू मुझे कोई बदतमीज़ ना समझ

मेरी वजह से कोई तकलीफ है तो बोल
इतना भी तू खुद को आजीज ना समझ

शुमार हूँ मैं भी शहर के नामी लोगों में
बेचैन मुझे इतना भी नाचीज़ ना समझ

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