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Thursday, 24 May 2012

मेरी सोच में बचपन से महकता गुलाब था

कुछ दोस्त कमीने निकले कुछ वक्त खराब था
मैं उन दिनों वरना सौ फीसदी कामयाब था

कब सोचा था नागफनी मेरे आंगन में उगे
मेरी सोच में बचपन से महकता गुलाब था

हां साज़िसों के आगे बेबस थी मेरी तकदीर
बेईमानों के झुण्ड में मैं अकेला जनाब था

मेरे साथ यारों को हिस्से का आसमां मिले
यही तो जुर्म था मेरा बस यही इक ख्वाब था

चलेगी साँस जब तलक ना भूलूंगा वो मंजर
मेरी बर्बादी का हर एक कदम लाजवाब था

नही मालूम क्यूं हो गया था सफर बनवास
मेरे पास मेरी मेहनत का पूरा हिसाब था

अब तू मिल गया है मुझे फिर बना लूँगा महल
पूछा तो खंडहरों का बेचैन यही जवाब था

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