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Saturday, 14 January 2012

कहाँ फंसी फिर बुदबुदाई होगी मगर कोई आसपास होगा


उसने ली जरुर अंगडाई होगी मगर कोई आसपास होगा
उसे मेरी याद तो आई होगी मगर कोई आसपास होगा

जुदाई के मारे मेरी हालत का अंदाज़ा लगाने पर यारों
उसकी आँख तो भर आई होगी मगर कोई आसपास होगा

बैठकर आईने आगे वो आज तो शायद सिंगार करते वक्त
अपने आप से बतियाई होगी मगर कोई आसपास होगा

उसकी फितरत में शामिल वही झूठा इक पुराना अफ़सोस
कहाँ फंसी फिर बुदबुदाई होगी मगर कोई आसपास होगा

शायद चुराकर सबसे नजरे उसने आह भरते हुवे बेचैन
मेरी गजल तो गुनगुनाई होगी मगर कोई आसपास होगा

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