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Sunday, 18 December 2011

होती मेरी माँ तो आज मुझे खूब धमकाती

होती मेरी माँ तो आज मुझे खूब धमकाती
दर्दे इश्क में पड़कर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

खून के आंसू रुलायेगे तुझे तेरे ही असआर
शायरी में धंसकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

आसमां की और थूकोगे तो मुहं पर गिरेगा
दूसरो पर हंसकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

तेरी दीवानगी और पागलपन कौन सराहेगा
जिंदगी से बचकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

झटके में लगा दे होश ठिकाने जिंदगी के
टुकडो में बंटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

कयामत तक कोई नही याद रखेगा तुझको
जमाने से कटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

भूल जा बेचैन किसने क्या कहा था तुझको
बातों से लिपटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है