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Thursday, 22 December 2011

तुम शक पर शक जताओगे शायर से दिल लगाकर

कुछ भी नही पाओगे शायर से दिल लगाकर
देखना पछताओगे शायर से दिल लगाकर

जमाने की गिनती पहाड़े कम जानता है
तुम कैसे निभाओगे शायर से दिल लगाकर

तुझे रखेगा हर वक्त अहसास के जंगल में
बहुत डर जाओगे शायर से दिल लगाकर

तुझे हर गजल में लगेगा महबूब इक नया
तुम शक पर शक जताओगे शायर से दिल लगाकर

तेरी जुल्फों की तरह ख्याल भी उलझ जायेंगे
किसको सुलझाओगे शायर से दिल लगाकर

होना पड़ेगा आपको  बेचैन हर बात पर
कितनी कसम खाओगे शायर से दिल लगाकर

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