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Sunday, 6 May 2012

तुमको तुम्हारी इक खता ने डूबोया है

मुझको जैसे मेरी वफा ने डूबोया है
तुमको तुम्हारी इक खता ने डूबोया है

हरेक मौज चिल्लाकर गवाही दे रही है
 कश्ती को यारों नाखुदा ने डूबोया है

मरने के बाद भी जिसे जिन्दा रहना था
उस अहसास को तो दगा ने डूबोया है

पत्थर पूजने का हश्र मालूम हुआ जब से
रो रहा हूँ मुझको श्रद्धा ने डूबोया है

बाप पर तो इल्ज़ाम लगा भी दोगे मगर
किस मुह से कहोगे मुझे माँ ने डूबोया है

सच्ची होती तो शायद जी लेता कुछ दिन
मुझे तुम्हारी झूठी अदा ने डूबोया है

घुटनों के बल ही चला था प्यार अभी बेचैन
जिसको तुम्हारे डर की सदा ने डूबोया है

1 comment:

***Punam*** said...

हरेक मौज चिल्लाकर गवाही दे रही है
कश्ती को यारों नाखुदा ने डूबोया है

बहुत खूब....!