हंसकर मेरे ख़्वाबों में आता रहे
वो ता-उम्र यूं ही मुस्कुराता रहे
वो रहम मुझ पर ना खाए बेशक
मुफलिसों पर तरस खाता रहे
मजा आ रहा हैं प्यार करने का
वो मुझे रोजाना ही सताता रहे
देखकर लोग यूं ही तारीफे करे
वो चाँद के जैसे शरमाता रहे
हर जन्म में तुम्हारा बेचैन
वो महबूब ही विधाता रहे
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