Friends

Sunday, 9 October 2011

यहाँ क्या मैं ही बेचैन हूँ



शर्मिंदा हूँ किसी बात से
नही सोया हूँ कई रात से
हुआ जाने कैसे हादसा
अनचाही सी मुलाक़ात से
वो जवाब ऐसा ही दे गये
डरता हूँ अब सवालात से
रह जाता हूँ बस कांप कर
हाय इश्क के ख्यालात से
तुझे जीते जी मरवा देगा
नही यारी रख ज़ज्बात से

वो किसकी जुल्फें संवारेगा
जो उलझ रहा हो हालात से
यहाँ क्या मैं ही  बेचैन हूँ
कोई पूछ दे कायनात से

1 comment:

***Punam*** said...

नहीं.....!

आप अकेले नहीं हैं..!

आप जैसे न जाने कितने और भी हैं....!!