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Friday, 21 October 2011

दिमाग पर यादों का भारी कैसे पलड़ा है



पूछूँगा खुदा मुझको गर मिल गये कभी
तदवीर और तकदीर में से कौन बड़ा हैं
क्यूं ता-उम्र सफर में ही रहता हैं आदमी
महफ़िल में होके भी कोई कैसे तनहा है
सीने में दिल,दिल में धडकने है लेकिन
रग रग में कोई बनके लहू क्यूं दौड़ता हैं
पलकों की मुंडेरों पे जुगनू बैठते है क्यूं
दिमाग पर यादों का भारी कैसे पलड़ा है
मालूम हो किसी को तो बताना हमें जरुर
क्यूं बेचैन जफा का हुश्न से गहरा नाता हैं

1 comment:

***Punam*** said...

पूछूँगा खुदा मुझको गर मिल गये कभी
तदवीर और तकदीर में से कौन बड़ा हैं

एक ही सवाल काफी है...