Friends

Thursday, 27 December 2012

मुझको मार डालेगा मौसम सर्द गर्म करके

बाहर ठंडी हवाएं और दिल में हिज्र की आग
मुझको मार डालेगा मौसम सर्द गर्म करके

सचमुच जानलेवा है सच्ची महोब्बत यारों
देख चुका हूँ मैं ये गलती से कर्म करके

जाने क्यूं नही हो रही दोस्तों दुआ कबूल
सौ तरह के देख चुका हूँ दान धर्म करके

यादें तो रूह की खाल उतारकर छोड़ेगी
अ दर्द तू ही रख अपना लहज़ा नर्म करके

दिल तो बेचैन उसके जाते ही थम गया था
नब्ज़ चल रही है जाने किसकी शर्म करके







Wednesday, 26 December 2012

जब माँ के हाथ में बेटा पहली कमाई देता है

जंग जिसकी भी छिड़ी रहती है वक्त-ओ-हालात से
क्यूं शख्स वही जमाने को खुदगर्ज़ दिखाई देता है

तैयार नही कोई किसी के ज़ज्बात समझने को
सबको अपनी मजबूरी का शोर सुनाई देता है

ताकि फर्क महसूस करे अपने और बेगानों में
खुदा इसलिए हिस्से में सबके असनाई देता है

कामयाबी भी उसी पल से कुछ सोचने लगती है
जब माँ के हाथ में बेटा पहली कमाई देता है

इसलिए लाज़मी है अपनी सोच का भरम रखना
उम्मीदों को यही तो पलने की दवाई देता है

हर्ज़ ही क्या है उसको एक और मौका देने में
बेकसूर होने की जो रो रोकर सफाई देता है

मरकर भी उसी के ख्यालों में बेचैन रहूँगा
जो आज मेरी कलम को गजले रुबाई देता है



देख तेरी नफरत के मैं कितना काम आ गया

माँ मेरी कहती थी मैं किसी भी काम का नही
देख तेरी नफरत के मैं कितना काम आ गया

बददुआओ और गालियों के लिए ही सही
मैं खुश हूँ तेरे लबो में मेरा नाम आ गया

गिडगिडाने से जहाँ खैरात तक ना मिलती हो
वही सर पर मेरे मुफ्त में इल्जाम आ गया

सचमुच आज पीने का मेरा मन नही था दोस्त
देखो फिर भी मुझे ढूंढ़ते हुवे जाम आ गया

सच बता मुझको बेचैन करने के बाद कितना
फीसद तुम्हारी कसमकश को आराम आ गया

Monday, 24 December 2012

मैं कभी काबिल हुआ तो पास आकर छुडवा लूँगा
गिरवी है मेरा वजूद तेरे पास कभी भूलना मत

आज गलतफहमियों ने सर उठाया है तो क्या हुआ
गुज़रे दौर में था खूब इखलास कभी भूलना मत

आज मैं जा तो रहा हूँ जुदाई के जंगलों में लेकिन
एक दिन खत्म होगा मेरा बनवास कभी भूलना मत

चाहे कितनी ही गिर जाए ये सेहत मगर अक्सर
रखूंगा जान तेरे लिए उपवास कभी भूलना मत

बस इतना कह सकता है अपनी सफाई में बेचैन
मरकर भी रहेगी मुझे तेरी प्यास कभी भूलना मत 

Sunday, 23 December 2012

यादों की गरमी ने पसीने छुड़ा रखे है

इसलिए नही कांपता सर्दी से मेरा बदन
यादों की गरमी ने पसीने छुड़ा रखे है

मेरा सर्द हवाए क्या बिगाड़ेगी वाइज़
दोनों हाथों में मैंने जाम उठा रखे है

बताओ कैसे भूला दूं उस प्यार को मैं
जिसके लिए अश्को के मोती लुटा रखे है

क्यूं नही आएगी बता उस शख्स को मौत
जान देने जिसने सौ बहाने जुटा रखे है

उसी की याद में खोया रहता हूँ  बेचैन
लम्हे मेरे सकून के जिसने चुरा रखे है

Thursday, 20 December 2012

अ आस्तीन के सांपों दिल तुम्हारा आभारी है


एक ने दिल तो एक ने पेट पर लात मारी है
अ आस्तीन के सांपों दिल तुम्हारा आभारी है

मेरे सामने मत आना अ कातिलों तुम कभी भी
सचमुच अगर तुम में अपने भरम की खुद्दारी है

किसी पर भी यकीं करने लायक नही छोड़ा मुझे
खतरनाक तुम दोनों में सांझे की हुशयारी है

तुम कौन सा बाज़ी मार गये दिल दुखाकर मेरा
दुखों से लड़ाई मेरी तो बचपने से जारी है

मुफलिसी कब से चीख रही है दगाबाज़ अमीरों
हम धरती का बोझ है क्या औकात हमारी है

जमीन पर जिनको ढंग से चलना नही आता है
सुना है उनकी चाँद पर जाने की तैयारी है

बचने में ही भलाई है उन लोगों से बेचैन
दुनिया के सामने जो भी गजब के व्यवहारी है

Wednesday, 19 December 2012

फैंसला आज हमने एक अजब बदल लिया है


फैंसला आज हमने एक अजब बदल लिया है
जो कभी ना बदलना था वो सब बदल लिया है

पत्थर के खुदा अब तू बेशक से जी उठना
थक हार कर हमने अपना रब बदल लिया है

बकाया उम्र शायद अब कसमकश में न गुज़रे
हमने जिंदगी को जीने का सबब बदल लिया है

मन्दिरों में मुझको अब कभी तलाश मत करना
जाकर मस्जिद में हमने मजहब बदल लिया है

बहुत मायने रखती थी जो मेरे लिए कभी
बेचैन उन बातों का मतलब बदल लिया है

Monday, 17 December 2012

वक्त तुमको एक दिन पछाड़ेगा जरुर

शेर जंगल का हो या फिर किसी गजल का
वो जिधर भी जायेगा दहाड़ेगा जरुर 

बुलंदी पर कब्जा करने वालों याद रखना
वक्त तुमको एक दिन पछाड़ेगा जरुर

जो बन्दर दिखता है तुम्हे गरूर के मारो
देख लेना वही लंका उजाडेगा जरुर

झूठ बोलकर गरीब का हक मरने वालों
पाप तुम्हारी जडो को उखाड़ेगा जरुर

गम न कर बेचैन सिफार्सियों का एक दिन
कोई मेहनतकश हुलिया बिगाड़ेगा जरुर

मैं आज ढंग से मयखाने में जाकर आया हूँ

हाँ तुम्हारी यादों को आग लगाकर आया हूँ
मैं आज ढंग से मयखाने में जाकर आया हूँ

सेहत की औकात से बढ़कर लगाकर ज़ाम
होश की धज्जिया मैं आज उड़ाकर आया हूँ

किसी का भी तो डर नही मुझे टोके जरा भी
मैं शराब की नदियाँ आज बहाकर आया हूँ

मय रगों में जब तक न बहेगी पीता रहूँगा
ये राज की बात किसी को बताकर आया हूँ

जब तक दम है इन आँखों में जिद छोड़ना मत
अपने आंसुओं को आज समझाकर आया हूँ

मिटा लूँगा खुद को वो ना आया तो बेचैन
मैं अपने अहसास की कसम खाकर आया हूँ

न मजबूर करो बने कोई गुनेहगार दोस्तों

बेशक देख लो करके सोच विचार दोस्तों
पैसे पर भारी पड़ता है व्यवहार दोस्तों

वो बड़े से बड़ा स्कूल भी नकली दंगल है
गर शिक्षा के संग नही देता संस्कार दोस्तों

लात पीठ पर मारो किसी के पेट पर नही
मत छीनना किसी का भी रोजगार दोस्तों

जरा सी बात का अफ़सोस उम्र भर रहेगा
न मजबूर करो बने कोई गुनेहगार दोस्तों

न बचा सकोगे खुद को बरबाद होने से
हाय लग गई गरीब की जो एक बार दोस्तों

गलती करे तो माफ़ कर सीने से लगा लो
अपनों को मत करो इतना शर्मसार दोस्तों

मौसम की मानिंद जिसकी सोच बदलती हो
बेहद खतरनाक होते है वो यार दोस्तों 

सबब किसी की बरबादी का न बनो बेचैन
हरेक शख्स को पालने दो परिवार दोस्तों

Sunday, 16 December 2012

यादें उसको तकलीफ पहुंचाती नही .......कमाल है !

वो आती नही उसकी याद जाती नही.......कमाल है !
सोच इक कदम भी आगे बढ़ पाती नही .......कमाल है !

जबकि मेरे दिलो-दिमाग में तो कोहराम मचा है
यादें उसको तकलीफ पहुंचाती नही .......कमाल है !

बसेरा कर लिया है अपनी तो आँखों में नमी ने
उसकी कभी पलके भी भीग पाती नही .......कमाल है !

उसको लेकर मैं तो खुद से रोजाना झगड़ता हूँ
क्या वो खुद से भी कभी कुछ बतियाती नही  .......कमाल है !

ये कैसे मुमकिन है महबूब से बिछड़कर बेचैन
ठंडी आहें किसी की रूह तडफाती नही   .......कमाल है !

हुश्न तू खा जा गरीब को एक ग्रास समझकर

इश्क बेशक चाहे तुझे अपना ख़ास समझकर
 हुश्न तू खा जा गरीब को एक ग्रास समझकर

मिसाल ऐसी पैदा कर रूह कांप उठे सबकी
लोग ठोकर पे रखे प्यार को बकवास समझकर

आखिर क्यूं छिडक जाता है वही नमक जख्मो पर
दर्द साँझा करते है जिससे गम शनास समझकर

इसलिए नही करता कोई मुफलिस की पैरवी 
साला जीता है जिंदगी को बनवास समझकर

उसकी फुरसत के पलों का खेल था बेचैन
 सीने से लगाया था जिसको अहसास समझकर 

Saturday, 15 December 2012

तू वापिस ले जा दिल अपना सौ ग्राम का


सचमुच नही है देख मेरे किसी काम का
तू वापिस ले जा दिल अपना सौ ग्राम का

अब और नही चुसूंगा उम्मीद की गुठली
तुमने गंवा दिया मौसम प्यार के आम का

कोशिश मत कर मुझे आँखों से पिलाने की
फ़िलहाल वक्त हो चला है असली जाम का

तू भी सूख कर छुआरा कभी नही होती
मान लेती कहना जो अपने झंडुबाम का

भाड़ में जाये अहसास तेल लेने जा तू
बेचैन आशिक हो गया है श्री राम का

क्या जरूरी है वो होगा मुझसे भी बेहतर

क्या जरूरी है वो होगा मुझसे भी बेहतर
जिसके लिए तू मुझको ठोकर लगा गया

तुझको तुम्हारी कसमकश ने लूट लिया है
अंदाज़े-ख़ामोशी तेरा सब बता गया

अल्लाह का शुक्र था मैं फिर भी नही मरा
कातिल तो पीठ में पूरा खंजर घुसा गया

मैं ढंग से मुस्कुराऊँ शायद ही उम्र भर
लबों की हंसी दिल का तू सकून खा गया

तू ऐसा ही सच्चा था तो गुफ्तगू करता
क्यूं चोरों की तरह भागकर मुह छिपा गया

जा मेरी दुआ है तुझे हजार यार मिले
अपना तो एक तू था तू ही चला गया

जब चोट लगी दिल पे तो कहना पड़ा मुझे
बेचैन दौर सचमुच में ही बुरा आ गया

Friday, 14 December 2012

मरने के बाद किसने वफ़ा पाई है देखो तुम

गंगा मेरी आँखों में उतर आई है देखो तुम
मेरी सोच में मीलों तक तन्हाई है देखो तुम

मेरे हिस्से का आकाश वापिस मुझे लौटा दो
ये सरासर बेईमानी-ओ-चतुराई है देखो तुम

अश्को के सिवाय यादें कुछ भी नही देती है
मेरी सलाह में सौ फीसदी सच्चाई है देखो तुम

जिस घर में होंगे बर्तन वो आवाज भी करेंगे
बता इसमें कहाँ बातों की गहराई है देखो तुम

हम जिंदा है जब तलक आ प्यार कर ले बेचैन
मरने के बाद किसने वफ़ा पाई है देखो तुम


Wednesday, 12 December 2012

हमको तो इंतजार ले डूबा

हद से ज्यादा करार ले डूबा
हमको तो इंतजार ले डूबा

दुश्मन होता तो बात ना थी कुछ
हमें अपना ही यार ले डूबा

प्यास जिसने बढ़ा के छोड़ दिया
हमे उसका व्यवहार ले डूबा

जिंदगी भर नही पनपते है वो
ढंग से जिनको प्यार ले डूबा

हम बनावट से दूर थे बेचैन
हमे सादा किरदार ले डूबा

यूं भी और यूं भी गर मौत को ही आना है तो


यूं भी और यूं भी गर मौत को ही आना है तो
शराब भी पीजिये जनाब ऊपर ही जाना है तो

फर्क नही पड़ता कुछ भी थोड़ी पीओ या जियादा
मयकश ही कहेंगे सब हाथ में पैमाना है तो

वो गम मेरा समझेगा क्यूं रोजाना पीता हूँ
कभी भी उसने अगर मुझे अपना माना है तो

दर्दे दिल के मारे कम से कम मिलेंगे वहां पर
इलाके में जिनके भी यारो मयखाना है तो

कहो किसलिए गाऊँ मैं गजले लोगों की लिखी
गुनगुनाऊंगा नाम तेरा कुछ गुनगुनाना है तो

बेचैन आखरी दम तक यूं ही इबादत करना
उसके अहसास में दिल तेरा दीवाना है तो

Tuesday, 11 December 2012

तुझे तरस नही आया बच्चे को छोड़ कर यहाँ

इतनी बड़ी दुनिया करोड़ो लोग और मैं तन्हा
तुझे तरस नही आया बच्चे को छोड़ कर यहाँ

क्यूं नही सोचा कौन कराएगा रोते हुवे को चुप
बता कौन थामेगा मेरी सुबकियों का कारवां

तू था तो दिल थोडा बहुत बचपना कर लेता था
तू नही है तो वजूद पड़ा है मकतल में बेज़ुबां

छा जाती है अँधेरी और जी घबरा जाता है
तेरी यादों का लगता है जब आँखों में धूंआ

कृष्ण कण-कण में था पर राधा के नसीब में ना था
क्या बेचैन के साथ भी दोहराई गई वो दास्तां

फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

वास्ता नही रखना तो फिर मुझपे नजर क्यूं रखता है
मैं किस हाल में जिंदा हूँ तू ये सब खबर क्यूं रखता है

बात अगर फूलों की कलियों की गुलशन की करता है
अपने लब्जों में फिर छिपाकर तू पत्थर क्यूं रखता है

गर कुनबा ही समझता है तू इस पूरी दुनिया को
फिर ज़हन के कोने में सदा अपना घर क्यूं रखता है

तू तो कहता है मैं दुखाता नही दिल किसी का भी
फिर खुदा तुम्हारी दुआओं को बेअसर क्यूं रखता है

किसी को जीतने की कोशिश तू करना नही चाहता
बता फिर हारने का मन में अपने डर क्यूं रखता है

इश्क इबादत है खुदा की जिसे तुमने ठुकरा दिया
फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

तू मुझको छोड़ तो सकता है पर भूला नही सकता
बता बेचैन मेरा वजूद तुझे मुख्तसर क्यूं लगता है

Monday, 10 December 2012

मुझको दर्द की वो ऐसी दौलत दे गया है

जितना खर्चता हूँ उतनी बढती जाती है
मुझको दर्द की वो ऐसी दौलत दे गया है

किसी से भी बतियाने को मन नही करता
अपनी यादों वो ऐसी सोहबत दे गया है

आकर के कल रात मेरे ख्वाब में कमबख्त
कुछ और दिन जीने की मोहलत दे गया है

चुगली ही सही मेरी होने लगी है चर्चा
वो कैसी मेरे हिस्से शोहरत दे गया है

ना जाने कब सिमटेगा अफ़सोस ये बेचैन
वो बेबसी किस जुर्म की बदौलत दे गया है




Sunday, 9 December 2012

तुम्हारी तस्वीर तक नही इबादत करूंगा कैसे

मैं दर्दे जुदाई की ता-उम्र हिफाजत करूंगा कैसे
तुम्हारी तस्वीर तक नही इबादत करूंगा कैसे

कलेजा नोच रही है यादें हरेक लम्हा हर घड़ी
ऐसे में ज़िंदा रहने की मैं आदत करूंगा कैसे

मैं चला भी जाऊ बेशक बज्मे इशरत में लेकिन
तेरे ना होने के गम की खिलाफत करूंगा कैसे

लगा नही पाऊंगा रोक ज़हन की बदमाशियों पर
ओरों की छोडो खुद से ही शराफत करूंगा कैसे

गुस्से की सौ बात मगर तुझे तो हकीकत मालूम है
बेचैन मैं अपने अक्स से अदावत करूंगा कैसे

दम निकलने को है आके जिंदगी दे दे

धडकनों को सकून लबो को हंसी दे दे
दम निकलने को है आके जिंदगी दे दे

कम न थी पहले ही हालात की उलझन
ऊपर से हिज्र दाता हयात से मुक्ति दे दे

ले चुका है मुझको आगोश में अँधेरा
मेरे हिस्से की मुझे कोई रौशनी दे दे

वादा है उम्र भर उफ़ तक ना करूंगा
तू बैठकर पास चाहे बेरुखी दे दे

वरना मरकर भी बेचैन रूह भटकेगी
तोड़ दूं चैन से दम इतनी ख़ुशी दे दे

Saturday, 8 December 2012

मत पूछों शराब कितना सकून देती है

मत पूछों शराब कितना सकून देती है
गम को गलत करने का जुनून देती है 

जीने का जब कोई भी बहाना ना बचे
उस हालत में मयकशी मजबून देती है

मस्ती के मारों आजमाकर तो देखो
बोतल रगों में नशीला खून देती है

लिखता तो हूँ मगर बेजान रहता हूँ
मुझे बेबसी जब वो खातून देती है

दम तोडती हयात को मयकशी बेचैन
सांसे खर्च करने का कानून देती है









Friday, 7 December 2012

मैं जीने के लिए ज़हर खाऊँ की नही

हूँ कशमकश में कदम उठाऊँ की नही
छोड़कर हयात-ए-बज्म जाऊं की नही

सचमुच में होती है मौत महबूबा तो
मैं जीने के लिए ज़हर खाऊँ की नही

मुझे बख्शे है जिसने खून के आंसू
मैं जिंदगी भर उसको रुलाऊँ की नही

रोज पूछ लेता मुह को आता कलेजा
बोल मैं निकलकर बाहर आऊँ की नही

मेरे बाद रहेगा वो बेचैन होकर
शर्त ये अपने आप से लगाऊँ की नही


Thursday, 6 December 2012

बे-मतलब बेकसूर मैंने नही छोड़ा वो छोड़कर गया है

बे-मतलब बेकसूर मैंने नही छोड़ा वो छोड़कर गया है
वो जानता था मैं अपाहिज हूँ इसलिए दौडकर गया है

अब पागलपन में देता रहूँगा उसे रोज नया इलज़ाम
दिल और दिमाग को परेशानियों से ऐसे जोड़कर गया है

ख़्वाबों को तो छोडिये यहाँ तो जीने से भी मन भर गया है
वो कम्बखत मेरे हौसले को इस कदर तोड़ कर गया है

उसका चलते ही जिक्र मुसलाधार बरस उठती है आँखे
इतने बुरे तरीके से वो मेरी रूह झंझोड़ कर गया है

शायद ही जीते जी आये कभी इस बात का सब्र बेचैन
वो जान बुझकर मेरी राह से अपनी राह मोड़कर गया है

मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ

मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ
भारी पड़े कौन कौन से ख्वाब लिख रहा हूँ

सच को सच और झूठ को झूठ पेश करके
वक्त की हेराफेरी का हिसाब लिख रहा हूँ

जिससे वास्ता नही उसकी क्यूं करूं पैरवी
गैर जरूरी सवालों के जवाब लिख रहा हूँ 

जो होगा देखा जायेगा परवाह नही अब 
करके हिम्मत खुलासों को जनाब लिख रहा हूँ

हिज्र में कोयले की तरह सुलगाते है रूह
मैं अश्को को इसलिए तेज़ाब लिख रहा हूँ

इबादत में नही मय्यत पर गिरने वाला
माफ़ करना तुझको वो गुलाब लिख रहा हूँ

भला कईयों का होगा इस बहाने बेचैन
कौन रखता है कितने नकाब लिख रहा हूँ

Wednesday, 5 December 2012

निभानी है मुझको और भी जिम्मेदारियां कई

आकर मुझे दर्द के दरिया से बाहर निकाल दे
निभानी है मुझको और भी जिम्मेदारियां कई

कम से कम तू तो मेरा उमर भर साथ दे दे
रिश्तेदार कर चुके है साथ मेरे गद्दारियां कई

अब इतने पेचीदा मत कर वजूद के हालात
तेरे गम के सिवा जिंदगी में है दुश्वारियां कई

बारूद का ढेर बन गई है सब यादें तुम्हारी
कर सकती है धमाका अश्कों की चिंगारियां कई 

कबूल करने से कद छोटा नही होता बेचैन
आदमी करता है मसखरी में मक्कारियां कई

Monday, 3 December 2012

बिन तेरे इतिहास कोई गढ़ ना पाऊंगा




जूते पहनकर मन्दिर में चढ़ ना पाऊंगा
कभी कलमा बेवफाई का पढ़ ना पाऊंगा

मौके हजार आ जाए हाथों में लेकिन
बिन तेरे इतिहास कोई गढ़ ना पाऊंगा

तू खोल दे आकर वजूद पर लगी बेड़िया
वरना एक कदम भी आगे बढ़ ना पाऊंगा

जो दिल में आयेगा बेबाक कह दूंगा
मैं सच पे, झूठ दोस्त कभी मढ न पाऊंगा

माफ़ करना चुभन होती है मुझे बेचैन
मैं शेर अपना मुकर्र कोई पढ़ ना पाऊंगा



Sunday, 2 December 2012

बंदिश है तेरे ख्वाबो में भी आऊँ तो आऊँ कैसे

बता एक खबर ख़ुशी की तुझ तक पहुँचाऊ कैसे
बंदिश है तेरे ख्वाबो में भी आऊँ तो आऊँ कैसे

वो काम हो गया है जो तू चाहता था मुद्दत से
अब दूर बैठा है मैं बात  कान में बताऊं कैसे

मैं खुश तो बहुत हूँ मगर मेरी आँखों में नमी है
तेरे दामन पर अब ख़ुशी के अश्क छलकाऊ कैसे

मुझे उसने बुलाया है जिसका इंतजार था कब से
बता अब तुझसे पूछे बगैर पास उसके जाऊं कैसे

किस तरह होगी तुम्हारे बिन सब तैयारिया बेचैन
मैं कशमकश में हूँ बात चढाऊँ तो चढाऊँ कैसे


Saturday, 1 December 2012

ऐसी क्या चीज़ थी जो उसको नही दे पाया

मेरे हर हाल पर रखता है वो नजर यारो
करता हूँ क्या मैं उसे होती है खबर यारों

वो जानबूझ कर फिर इतना सताता क्यूं है
क्या वो चाहता है रोता रहू उमर भर यारो

ऐसी क्या चीज़ थी जो उसको नही दे पाया
जब दे चुका वजूद तक का करके कलम सर यारो

हां कूच दुनिया से कब का कर जाता मैं लेकिन
वो तन्हा रह जायेगा रोके है यही डर यारो

मैं होकर बेचैन सोचता हूँ उसने आखिर
छिपा के फूलों में मारे है क्यूं पत्थर यारों



ये दिन ही दिखाना था तो ना आता हयात में

हाय क्यूं सेंध लगाई तुमने मेरे ज़ज्बात में
ये दिन ही दिखाना था तो ना आता हयात में 

मैं ढूंढता रहता हूँ शक्ल खुद की रात-ओ-दिन
चेहरे पर उगती ढाढ़ी के इस जंगलात में

फिर बैठकर अफ़सोस ही जताना तुम उमर भर
दम निकलेगा मेरा किसी दिन बातों ही बात में

कोई ढंग से जानता हो तो बतला दो दोस्तों
इबादत का समर दोजख है क्यूं कायनात में

मैं कब का भूला देता उस शख्स को बेचैन
रिहायश नही करता वो अगर ख्यालात में



Friday, 30 November 2012

मेरे ज़ज्बात को तुमने सहलाया क्यूं था

दूर ही जाना था तो पास में आया क्यूं था
मेरे ज़ज्बात को तुमने सहलाया क्यूं था

मैं बेहद खुश था छोटी सी अपनी दुनिया में
तुमने दुनिया से मुझे बाहर बुलाया क्यूं था

मारना ही था तमाचा तो मुह पे मार देता
तुमने अहसास को हथियार बनाया क्यूं था

दर्द के रिश्ते से बढ़कर नही है रिश्ता कोई
बांधकर हाथ में घड़ी तुमने बताया क्यूं था

रोने देता मुझे मुलाकात पर समझकर पागल
पौछ्कर आंसू मेरे चुप ही कराया क्यूं था

झूठ था सब कुछ तो फिर वो मुलाकात क्या थी 
पहरों मुझको गोद में तुमने सुलाया क्यूं था

सच यही है मैं चैन मरकर भी नही पाऊंगा
मेरे अल्लाह मुझे दुनिया ही लाया क्यूं था

Thursday, 29 November 2012

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ
मुहं को आते हुवे कलेजे को थाम लेता हूँ

हाँ इस तरह मैंने नशीली हयात कर डाली
कभी अश्को के तो कभी मय के जाम लेता हूँ

तू मेरे खुदा इश्क का था और रहेगा सदा
इसलिए नाम तेरा सुबह-ओ-शाम लेता हूँ

मन की हालत चेहरे पर उभर ही जाती है
कहने को तो मैं समझदारी से काम लेता हूँ

अपने बेचैन के खातिर तू लौटकर आजा
लो मैं अपने सर सारे ही इल्जाम लेता हूँ

Wednesday, 28 November 2012

देता है कौन साथ उमर भर किसी का

देता है कौन साथ उमर भर किसी का
बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा जिंदगी का

अहसास रिश्ते नाते कदम भर ही चलेंगे
हाँ सदियों से तजुर्बा रहा है आदमी का

ज़ज्बात की बारिश है वादे और कुछ नही
यारो ये  दौर होता है फ़क्त संजीदगी का

समझ जाना असर रूह पर भी हो गया है
आँखों में नमी भर दे जो लम्हा ख़ुशी का

मिलेगा हर हाल में अगर किस्मत में है वो
बस बेचैन यही है इलाज़ बेकसी का



सब कुछ तुम्हारा है कही भी करिये बसेरा

ये दिल है ये दिमाग है ये जहन है मेरा
सब कुछ तुम्हारा है कही भी करिये बसेरा

कब्जा था इस रूह पर मुद्दत से किसी का
छुडवाया है मुश्किल से कर जादू का घेरा

आँखों में रहो सांसो में या धडकनों में तुम
लहू बन रगों में दौड़ने का हक़ है तेरा

ना जाने कितनी रातों से मैं मुन्तजिर था
मेरे दाता शुक्रिया किया जो तुमने सवेरा

वैसे भी जाने वालों को किसने रोका है
बेचैन आना जाना कुदरत का है फेरा

Tuesday, 27 November 2012

अल्लाह उसे जहाँ भर का सकून देना

अल्लाह उसे जहाँ भर का सकून देना
कभी जरूरत पड़े तो मेरा खून देना

देना उलझनों को मेरे घर का पता
उसे कभी ना कोई उधेड़बून देना

जिंदगी भर उसी के हक में फैंसला हो
अ कुदरत उसे ऐसा कानून देना

उसको खूब चाहने वाले मिले मगर
कभी मुझसा ना कोई अफलातून देना

जिसको पढकर रूह झूम उठे बेचैन
उसको खतों में ऐसा मज़मून देना

Monday, 26 November 2012

तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली

तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली
ढलते ही शाम देखकर मुझको मुस्कुरा देती है

जितना भी अहसान मानू कम है तन्हाइयों का
खूब रोने के बाद अश्को को सूखा देती है

दोस्तों बचपन से नफरत थी मुझको मयकशी से
उसकी याद मगर नफरतों को भूला देती है

आज मेरी तरफ है तो कल उसकी ओर होगा
यादें नम्बर से रोने का सिलसिला देती है

मैंने देखी है सच्ची महोब्बत में वो ताकत
तडफ तो वजूद की जडो तक को हिला देती है

इतनी पी ले बेचैन की हद की हद हो जाए
सुना है बेहोशी में मौत अपना बना लेती है



Sunday, 25 November 2012

शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों

शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों
कमबख्त हो रही हालत कुछ खराब दोस्तों

क्यूं टिक नही रहे है साले पैर जमीन पर
मुझको जाना है करने कुछ हिसाब दोस्तों

सांसो की तरह जुबा भी लडखडा उठी है
सुबह दूंगा सब सवालों का जवाब दोस्तों

उसकी खूबियों का जिक्र अब क्या करू भला
उसका पसीना था खुशबू-ए-गुलाब दोस्तों

रहने लगेगी हर घड़ी आँखे सुर्ख तुम्हारी
मत देखना कभी महोब्बत में ख्वाब दोस्तों

दम कल निकलता बेचैन अब ही निकल जाये
नही चाहिए लम्बी उम्र का खिताब दोस्तों 

उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है

दिल में यादों के नश्तर कुछ यूं सुई चुभाते है
उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है

अश्क नही आँखों से अब लहू टपकने लगा है
क्या होगा हम बिगडती हालत से घबराते है

रकीब को भी ना मिले ऐसी तडफ-ओ-बेबसी
हम सजदे में दिन रात यही दुआ फरमाते है

मुझको तो इल्म नही है अपनी हालत का मगर
मुश्किल बचेगा देखने वाले ही बताते है

इश्क है तो बुरे ख्याल भी आयेंगे बेचैन
मानता नही जबकि मन को खूब समझाते है

Saturday, 24 November 2012

या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा


या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा
वरना तब तक पीऊंगा ना जब तक दम निकलेगा

मेरे बाद, जमाने के साथ तुम भी देखोगे
फिर कभी ना तेरी जुल्फों-सोच का खम निकलेगा

इसलिए बैठ गया हूँ साँझ ढलते ही पीने
आखरी जाम के साथ में रंजो-अलम निकलेगा

आज काबू से बाहर हो चला है दर्दे बेबसी
शायद इस दिल के धडकने का भ्रम निकलेगा

बेचैन रूह को चाँद सी ठंडक बख्शने वाले
नही सोचा था तेरा लहजा यूं गरम निकलेगा

खम= उलझन

बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ

आज मेरे एक शायर दोस्त के चेले से तीखी गुफ्तगू हुई तो लिखने पर मजबूर हुआ ..........

बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ
मैं तो सीधे सीधे मन की बात बोलता हूँ

रखकर गुरेज हर्फों की जादूगरी से
सादगी का शेरो में रंग घोलता हूँ

कुछ भी तो नही रखता दिल में छिपाकर
ज़ज्बात की गाँठ सरेआम खोलता हूँ

उस्तादों सी संजीदगी नही है मुझमे
मैं शागिर्दों की तरह मस्त डोलता हूँ

छेड़ता हूँ बेचैन फक्त दिलजलो को
खुशहालों का कलेजा कम छोलता हूँ


Thursday, 22 November 2012

तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा

तेरी  बेवफाई के जख्मो को कभी भरने नही दूंगा
तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा

थूकता रहूँगा सुबह और शाम तेरी तस्वीर पर
तेरी इबादत अब धडकनों को करने नही दूंगा

ले लेकर तेरा नाम बहुत रो चुका बिलख-बिलखकर
आइन्दा आंसुओ को दिन रात झरने नही दूंगा

निकाह मौत से करना पड़ा तो कर लूँगा चुपचाप
अब दर्द-ए-जुदाई को जियादा निखरने नही दूंगा

बेचैन तेरे साथ गुज़ारे हुवे लम्हों की कसम
तुम्हारी यादों को कदम ज़हन में धरने नही दूंगा

Wednesday, 21 November 2012

वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था

मेरा दिल जिस शख्स का इंतजार किये बैठा था
वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था

समझता था मैं जिसको जमाने में सबसे जुदा
बदलकर नाम अपने दर्जनों यार किये बैठा था

बेवकूफी में बहाए जिस बदजात के लिए अश्क
ना जाने मुझसे कितनो को बीमार किये बैठा था

मन झूमता रहता था जिस अहसास के आंगन में
उस दर्द के रिश्ते को वो शर्मसार किये बैठा था

शुक्र है मिल गई रिहाई वक्त के रहते हुवे बेचैन
वरना झूठ से रूह को गिरफ्तार किये बैठा था

Tuesday, 20 November 2012

उधर देश के इधर दिल के हालात बिगड़े है

उधर देश के इधर दिल के हालात बिगड़े है
खुदा जाने क्या होगा दिन और रात बिगड़े है

देश को नेताओ ने दिल को सितमगर ने लूटा
फ़िक्र किसकी करू बुरी तरह ज़ज्बात बिगड़े है

चुटकला बनके रह गई है लगभग जिंदगी सबकी
आखिर किसलिए ज़िंदादिली के ख्यालात बिगड़े है

जवाब देने वाला क्या ऐसी तैसी करवाएगा
जब पूछने वाले के ही सवालात बिगड़े है

वक्त कैसे अच्छा आएगा उस शख्स का बेचैन
चोट खाकर जिसके मौजूदा लम्हात बिगड़े है

Saturday, 17 November 2012

पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन

तडफ में डूबे तेरे तोहफे पास रखता किसलिए
दे आया मौलवी को ताबीज-ए-ख़ास के बदले

यकीनन वो तन्हाई में एक रोज सुबकियां भरेंगे
जो ज़हर पिलाते है किसी को विश्वास के बदले

चलो छोडो अब ख़ाक डालों किसके साथ क्या हुआ
मैं ही जानता हूँ क्या मिला मुझे अहसास के बदले

यही मेहरबानी मांगी है दो जहाँ के मालिक से
मुझको दुश्मन दे देना ऐसे गम शनास के बदले

पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन
तुझको भी आंसू मिले सबसे इखलास के बदले

Friday, 16 November 2012

आशिक और नेता में कोई फर्क नही

आदमी पर जब वक्त बुरा आता है
ऊंट पर बैठे को कुता काट खाता है

आशिक और नेता में कोई फर्क नही
दोनों का दिल हारकर पछताता है

दौलत से बढ़कर एक और नशा है
शोहरत का जिसे भूत कहा जाता है

अक्ल तो धक्के खाने से आएगी
बादाम दिमाग थोड़े ही चलाता है

जिसकी रगों में है बेचैन गंदा खून
माल हराम का उसी को भाता है

सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है

सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है
अनार सी चलती है फुलझड़ी सी खिलखिलाती है

मैं फुस्स की आवाज के साथ खामोश हो जाता हूँ
मुझे बम की तरह गुस्से में जब वो धमकाती है

...
नाराजगी की सौ बात पर हकीकत तो यही है
मैं दीया हूँ उसका तो वो मेरी बाती है

मन में अँधेरा ना रहने का यही सबब है यारो
वो चिराग बन दिल की मुंडेरो पर झिलमिलाती है

मेरे हिस्से की खुशियाँ भी उसे ही मिले बेचैन
काश दिवाली पर दुआ अगर कबूल हो जाती है
See More

हो सके तो मुझे अब बिखरने मत दे

मैं टूटने की हद तक टूट चुका हूँ
हो सके तो मुझे अब बिखरने मत दे

एक ही बार बनता है दर्द का रिश्ता
इस रिश्ते को बेमौत मरने मत दे

दूरिया बढाती है गलतफहमियाँ
गलतफहमी को ज्यादा निखरने मत दे

सूख जायेगा आंसुओ का समन्दर
इन आँखों को इतना झरने मत दे

पहले ही है खौफजदा जिंदगानी
और मुझको अब बेचैन डरने मत दे

Sunday, 11 November 2012

मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का

दिवाली बिन तेरे कैसे मनाऊंगा बता तो दे
क्या रोने से खुद को रोक पाऊंगा बता तो दे

मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का
मैं ऐसे में कहाँ खुद को छिपाऊंगा बता तो दे

...
नोचे है कलेजे को तेरा गम लम्हा दर लम्हा
मिठाइयां क्या सोचकर मैं खाऊंगा बता तो दे

दिखाना था यही दिन तो क्यूं नजदीक आया था
सचमुच कसूर अपना समझ जाऊंगा बता तो दे

तुझे नही भूल पाया हूँ मुझे अ भूलने वाले
क्या उम्र भर ना मैं याद आऊंगा बता तो दे

चैन बेचैन ने माँगा था कोई दौलत नही मांगी
क्या ढंग से मैं कभी मुस्कुराऊंगा बता तो दे

लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से

अपना रस्ता अपनी मंजिल मुबारक हो तुझे
लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से

और ज्यादा सहन करना मेरे बस का नही
तंग आ गया हूँ तुम्हारी नखरीली अदा से

मिली इबादत के बदले में नरक की सजा
क्या कसूर था पूछूँगा मैं जाकर खुदा से 

उसकी बेरुखी तो बाद में असर करती
दामन जला बैठा मैं अपनी ही वफा से 

धरा रह गया जिंदादिली का ज़ज्बा बेचैन
लो हार गया मैं साँसे जिंदगी की जुआ से